राज्य सरकार कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसानों को कृषि उपचार के लिए निरन्तर सलाह प्रदान कर रहे हैं। प्रदेश के जिलों में खेती-किसानी में होने वाले बीमारियों को जिलावार चिन्हाकित कर कीटनाशक छिड़काव के बारे में किसानों को जानकारी दी जा रही है। इसी कड़ी में सुकमा जिले के विभिन्न गांवों में धान के खेतों मे पत्ती मोड़क कीट का प्रकोप दिखाई दिया है इसे पत्ति लपेटक या चितरी या सोरटी कहा जाता है। इसके उपचार के लिए कीटनाशक छिड़काव के विधि और तरीके बताए गए हैं।कृषि विज्ञान केन्द्र, सुकमा के कृषि वैज्ञानिकों ने जिले के मुरतोणडा, पेरमापारा, नीलावरम, तोगपाल, सोनाकुकानार, नयानार, रामपुरम का मैदानी भ्रमण के दौरान धान के खेत में पत्ती मोड़क कीट का प्रकोप पाया गया, इसे पत्ति लपेटक या चितरी या सोरटी कहा जाता है। इस कीट की इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती है इस कीट की इल्ली अपने लार द्वारा पत्ती की नोंक को या पत्तियों के दोनों सिरो को चिपका लेती है इस तरह इल्ली इसके अंदर रहकर पत्तियों के हरे भाग (क्लोरोफिल) को खुरच खुरच कर खा जाती है जिसके कारण पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देती है, जिसकी वजह से पत्तियों में भोजन बनाने की प्रकिया नहीं हो पाती है। कीट द्वारा ग्रसित पत्तियाँ बाद में सुखकर मुरझा जाती हैं व फसल की बढवार भी रूक जाती हैं। इसके नियंत्रण और उपचार के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रभावी उपाय अपनाने किसानों को सलाह दिया। जिनमें खेतों एवं मेड़ों को खरपतवार मुक्त रखें। संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करें। खेतों मे चिडियों के बैठने के लिए टी आकार की पक्षी मीनार लगाए। रात्रि चर कीट को पकड़ने के लिए प्रकाश प्रंपच या लाइट ट्रैप खेतो में लगाए। अण्डे या इल्ली दिखाई देने पर उसे इकट्ठा करके नष्ट करें। कीट से प्रभावित खेतों में रस्सी चलाएं।
कृषि वैज्ञनिकों ने बताया कि बारिश रुकने व मौसम खुला होने पर कोई एक कीटनाशक का स्प्रे काराये। क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. 1250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या कर्टाफ हाइड्रोक्लोराइड 50रू एस.पी. 1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर या क्लोरेटानिलिप्रोएल 18.5ः एस.सी. 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर या इंडोक्साकार्ब 15.80 प्रतिशत ई.सी.200 मि.ली. प्रति हेक्टेयर का उपयोग करके प्रभावी नियंत्रण कर सकते हैं, ठीक न होने पर 15 दिन बाद दूसरे कीटनाशक का छिडकाव करें और अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क करके ही रासायनिक दवाइयों का उपयोग करें।